Thursday, September 9, 2010

श्रावणी

विराट सिंधु..श्रावणी माई,सिंधुताई सायंकाल दोडते भागते, एक सामान यहाँ दूसरा वहाँ से इकट्ठा करते हुए थोड़ी देर से "सन्मति बॉल निकेतन" दिया टीम के साथ श्रुति का जन्मदिन मनाने पहुचे . सबसे पहली मुलाकात श्रावनी से हुई, जो मुझे अपनी innocence से विदाई समय तक बाँधे रही . यह एक ऐसी बालिका है जिसे इसकी जननी ने १५ दिन की उम्र मे श्रवण महिमे मे त्याग दिया तो पालनहारी माँ मिली सिंधुताई जिन्होने उसे श्रावनी का नाम दिया. कितनी प्यारी बालिका है ये मैं सोच रहा था की इसे माँ बाप ने किन परिस्थियों मे त्यागा होगा कि रोती बिलखती अवस्था में माई "सिंधुताई" ने अपने सीने से लगाया दुलारा थपकाया. अचानक ही सामने दो हाथ जोड़े वह नमस्कार करने लगी तो मेरे दोनो हाथ आगे बढ़े व उठा गोदी मे बिठा लिया. सोचने लगा कि क्या इसको बोध है की इसके biological parents ने इसे त्याग दिया है. लेकिन शायद इसकी आवश्यकता नही क्योंकि किसी प्रकार मछली को एक जलधारा से दूसरी जलधारा मिल ही गयी. ऐसी जलधारा जिसमे ऐसा ममत्व है कि अपनी ही पुत्री ममता को "दगड़ुसेठ हलवाई ट्रस्ट" को सौंप दिया ताकि ऐसे अनाथ बच्चो को unpartial प्यार दे सकें. आज तक १००० से ज़्यादा बच्चो या बड़ों को सानिध्य दिया. जिनमे से अनेक डॉक्टर, वकील आदि व्यवसाय मे पहुच चुके हैं. अनेकों की शादी होगयी. अनेक अपनी प्रतिभा मुताबिक अध्ध्यन आदि मे जुटे हुए हैं. ऐसा सिंधु समान कार्य को सिंधुताई कर रही हैं जिन्हे सभी "माई" के नाम से पुकारते हैं क्योंकि जिनका कोई देखने वाला नही वह माई का बच्चा है और यह संभव है donation के द्वारा, माई ने खुद भीख माँगकर ये आश्रयालय खड़े किए हैं. आज भी वह झोली वैसे ही फैली हुई है, क्या आप भी उस झोली में अंश दान कर सकते हैं? अवश्य करें क्योंकि आप श्रावनी का कल उज्ज्वल कर सकते हैं. वहाँ अनेको श्रावनी हैं जिनकी उमर १५ दिन से लेकर ८५ साल तक है जिनका अपना कोई खून का रिश्ता नही लेकिन असीम प्यार का आँचल है-माई.

इसी सब विचारो मे डूबा था की बच्चों का खाना तैयार हो गया और बच्चों व हमारे परिवारों ने साथ बैठ खाना खाया. कितना तृप्ति भरा खाना था माई की रसोई से जो आया था,एहसास से दिल भर आया.

इसके बाद सबने श्रुति के जन्मदिन का गाना गाया और शुभकामनाएँ दी,साथ मे वहाँ उपस्थित सभी बच्चों का जन्मदिन भी मनाया,गाना गाया,गाते गाते आँखों से आँसू आगये व गला अवरुद्ध हो गया. श्रावनी की मासूमियत व परिस्तिथियों को सोच मेरी आँखें पत्थर सी हो गयी,खून थम सा गया,शरीर सुन्न हो गया. नज़र उठाई तो माई की तस्वीर दिखी, आँखों से जलधारा बही. दिया की और से जो कपड़े, वस्त्र, खाना, डोनेशन आदि लेके आए,वह देके इस वायदे को मन में लिए कदम बाहर बढ़ाया कि श्रावनी,दोबारा मिलने आयेंगे,तुम्हारे जीवन को उत्तम बनाने में "माई" के कंधे को सहारा देंगे. साथ ही गुरुदेव व गुरुमाँ से प्रार्थना की कि वह शक्ति,सामर्थ व सदचेतना दें कि यह कार्य होता रहे लेकिन कोई दूसरी श्रावनी कभी रोती बिलखती फिर कभी ना त्यागी जाए. युग निर्माण का कार्य तेज़ी से हो,व्यक्तित्व निर्माण अतिशीघ्र हो.

BE BORN AGAIN. . . with "Thought Revolution"

Never ending effort of.....
Divine India Youth Association (DIYA)

Contributed By:
Mr. Anil Saraswat

1 comment: