अवतरित हो चुकी आज युग-चेतना, अब 'युवा-चेतना' जागरण का समय है!
एक जुट हो शपथ लो, सपूतों बढ़ो, अब युवा-राष्ट्र के नव-सृजन का समय है!!
बज गया शंख अब भी हो भू पर पड़े, क्या तनिक भी नहीं राष्ट्र से प्यार है?
है ये अनुराग मन में, या भयभीत हो, या पराजय तुम्हें आज स्वीकार है?
घेरकर हैं खड़े, सारे कौरव तुम्हें, 'पार्थ' गांडीव लो, आज रण का समय है!
क्या हुआ कि धधकती वो ज्वाला नहीं? क्यों मनों में तरंगित शिवाला नहीं?
भिड़ गया था जो सीता-हरण के समय, वो जटायु था कोई निराला नहीं!
मौन को तोड़ दो, वायु को मोड़ दो, जागो 'बजरंग' ये लंका-दहन का समय है!
वासना की गरल आँधियाँ हैं चली, तीव्र तूफान है स्वार्थ की वृत्ति का!
क्रोध विद्युत है, लालच भरे अभ्र हैं, बरसता है उदिक मोह-अनुरक्ति का!
लोकहित 'पूज्यवर' फिर हैं 'गिरिधर' बने, तुम भी लाठी लगा लो, श्रेय-धन का समय है!
विश्व व्याकुल है, मानव विकल हो रहा, सबके मन में सघन घोर तम व्याप्त है!
पीर मन की हरो, प्राण उर में भरो, तुम सजल हो, प्रखरता तुम्हें प्राप्त है!
जल रही हैं मशालें विचार-क्रांति की, 'प्रज्ञापुत्रों' प्रखर आचरण का समय है!
- रोहित 'अथर्व'
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