लाशें उन वतन परस्तों के सपनों की,
जहाँ खंडहरों के मलबों में मिला करे |
देश अपना तो अब आजाद है,
कोई क्यों गिला करे ?
देख ली है संसद और ताज ने खूब गोलियां,
कोई तो अब नयी इमारतें खड़ा करे ?
यह रहा है समर्थक मानवाधिकारों का,
क्यों ना अफज़ल-कसाब केस लड़ा करे ?
बात है अब नागालैंड - अरुणाचल की
'उस' भूले कश्मीर की अब कौन चर्चा करे ?
उस 'नागरिक' के 'समाज' को क्या कहें,
भूगोल जहाँ हर इतिहास से बचा करे |
कहाँ नहीं मिलते कानून के रखवाले आजकल,
क्यों ना हर शहर में 'रुचिका' मिला करे ,
अब नहीं होंगे कोई प्रश्न नैतिकता पर,
घोटाले भी तो अब यहाँ 'आदर्श' हुआ करे |
'उस' विकास की दौड़ में हम भी कुछ कम नहीं,
क्यों ना यह हरेक की जुबां से लगा करे,
कौन चाहता है 'हिन्दी' होकर नीच दिखना
अंग्रेजियत से भला कोई क्यों दगा करे ?
भूलकर अपनी संस्कृति के मूल्यों को,
जो उधार 'सभ्यता' औरों की लिया करे |
खायें यहाँ की और गाएँ किसी और की,
कोई आके हमसे यह तो सीख लिया करे |
- राजेश 'आर्य'
Saturday, November 20, 2010
Wednesday, November 3, 2010
Thursday, September 9, 2010
श्रावणी
विराट सिंधु..श्रावणी माई,सिंधुताई सायंकाल दोडते भागते, एक सामान यहाँ दूसरा वहाँ से इकट्ठा करते हुए थोड़ी देर से "सन्मति बॉल निकेतन" दिया टीम के साथ श्रुति का जन्मदिन मनाने पहुचे . सबसे पहली मुलाकात श्रावनी से हुई, जो मुझे अपनी innocence से विदाई समय तक बाँधे रही . यह एक ऐसी बालिका है जिसे इसकी जननी ने १५ दिन की उम्र मे श्रवण महिमे मे त्याग दिया तो पालनहारी माँ मिली सिंधुताई जिन्होने उसे श्रावनी का नाम दिया. कितनी प्यारी बालिका है ये मैं सोच रहा था की इसे माँ बाप ने किन परिस्थियों मे त्यागा होगा कि रोती बिलखती अवस्था में माई "सिंधुताई" ने अपने सीने से लगाया दुलारा थपकाया. अचानक ही सामने दो हाथ जोड़े वह नमस्कार करने लगी तो मेरे दोनो हाथ आगे बढ़े व उठा गोदी मे बिठा लिया. सोचने लगा कि क्या इसको बोध है की इसके biological parents ने इसे त्याग दिया है. लेकिन शायद इसकी आवश्यकता नही क्योंकि किसी प्रकार मछली को एक जलधारा से दूसरी जलधारा मिल ही गयी. ऐसी जलधारा जिसमे ऐसा ममत्व है कि अपनी ही पुत्री ममता को "दगड़ुसेठ हलवाई ट्रस्ट" को सौंप दिया ताकि ऐसे अनाथ बच्चो को unpartial प्यार दे सकें. आज तक १००० से ज़्यादा बच्चो या बड़ों को सानिध्य दिया. जिनमे से अनेक डॉक्टर, वकील आदि व्यवसाय मे पहुच चुके हैं. अनेकों की शादी होगयी. अनेक अपनी प्रतिभा मुताबिक अध्ध्यन आदि मे जुटे हुए हैं. ऐसा सिंधु समान कार्य को सिंधुताई कर रही हैं जिन्हे सभी "माई" के नाम से पुकारते हैं क्योंकि जिनका कोई देखने वाला नही वह माई का बच्चा है और यह संभव है donation के द्वारा, माई ने खुद भीख माँगकर ये आश्रयालय खड़े किए हैं. आज भी वह झोली वैसे ही फैली हुई है, क्या आप भी उस झोली में अंश दान कर सकते हैं? अवश्य करें क्योंकि आप श्रावनी का कल उज्ज्वल कर सकते हैं. वहाँ अनेको श्रावनी हैं जिनकी उमर १५ दिन से लेकर ८५ साल तक है जिनका अपना कोई खून का रिश्ता नही लेकिन असीम प्यार का आँचल है-माई.
इसी सब विचारो मे डूबा था की बच्चों का खाना तैयार हो गया और बच्चों व हमारे परिवारों ने साथ बैठ खाना खाया. कितना तृप्ति भरा खाना था माई की रसोई से जो आया था,एहसास से दिल भर आया.
इसके बाद सबने श्रुति के जन्मदिन का गाना गाया और शुभकामनाएँ दी,साथ मे वहाँ उपस्थित सभी बच्चों का जन्मदिन भी मनाया,गाना गाया,गाते गाते आँखों से आँसू आगये व गला अवरुद्ध हो गया. श्रावनी की मासूमियत व परिस्तिथियों को सोच मेरी आँखें पत्थर सी हो गयी,खून थम सा गया,शरीर सुन्न हो गया. नज़र उठाई तो माई की तस्वीर दिखी, आँखों से जलधारा बही. दिया की और से जो कपड़े, वस्त्र, खाना, डोनेशन आदि लेके आए,वह देके इस वायदे को मन में लिए कदम बाहर बढ़ाया कि श्रावनी,दोबारा मिलने आयेंगे,तुम्हारे जीवन को उत्तम बनाने में "माई" के कंधे को सहारा देंगे. साथ ही गुरुदेव व गुरुमाँ से प्रार्थना की कि वह शक्ति,सामर्थ व सदचेतना दें कि यह कार्य होता रहे लेकिन कोई दूसरी श्रावनी कभी रोती बिलखती फिर कभी ना त्यागी जाए. युग निर्माण का कार्य तेज़ी से हो,व्यक्तित्व निर्माण अतिशीघ्र हो.
BE BORN AGAIN. . . with "Thought Revolution"
Never ending effort of.....
Divine India Youth Association (DIYA)
Contributed By:
Mr. Anil Saraswat
इसी सब विचारो मे डूबा था की बच्चों का खाना तैयार हो गया और बच्चों व हमारे परिवारों ने साथ बैठ खाना खाया. कितना तृप्ति भरा खाना था माई की रसोई से जो आया था,एहसास से दिल भर आया.
इसके बाद सबने श्रुति के जन्मदिन का गाना गाया और शुभकामनाएँ दी,साथ मे वहाँ उपस्थित सभी बच्चों का जन्मदिन भी मनाया,गाना गाया,गाते गाते आँखों से आँसू आगये व गला अवरुद्ध हो गया. श्रावनी की मासूमियत व परिस्तिथियों को सोच मेरी आँखें पत्थर सी हो गयी,खून थम सा गया,शरीर सुन्न हो गया. नज़र उठाई तो माई की तस्वीर दिखी, आँखों से जलधारा बही. दिया की और से जो कपड़े, वस्त्र, खाना, डोनेशन आदि लेके आए,वह देके इस वायदे को मन में लिए कदम बाहर बढ़ाया कि श्रावनी,दोबारा मिलने आयेंगे,तुम्हारे जीवन को उत्तम बनाने में "माई" के कंधे को सहारा देंगे. साथ ही गुरुदेव व गुरुमाँ से प्रार्थना की कि वह शक्ति,सामर्थ व सदचेतना दें कि यह कार्य होता रहे लेकिन कोई दूसरी श्रावनी कभी रोती बिलखती फिर कभी ना त्यागी जाए. युग निर्माण का कार्य तेज़ी से हो,व्यक्तित्व निर्माण अतिशीघ्र हो.
BE BORN AGAIN. . . with "Thought Revolution"
Never ending effort of.....
Divine India Youth Association (DIYA)
Contributed By:
Mr. Anil Saraswat
Friday, June 5, 2009
'ताज' के किनारे खड़ा पेड़
मैं तब से खड़ा हूँ यहाँ पर
जब कोई नही आता था यहाँ
सिवाय उन चिडियों की चहचाहट के
जो हमारे ऊपर से गुजरते हुए
हमारी जटाओं को देखकर
अनायास ही कुछ बातें करने लगते थे |
मेरे पास खड़े दोस्त भी खुश हो जाते थे
और होड़ मच जाती थी हममे
की कौन अपनी जटाएं कितनी फैला सकता है |
फ़िर धीरे-धीरे मैंने देखा
कुछ थके-परेशान लोगों को हमारे पास आते हुए
पहले तो मुझे अच्छा नही लगा
उनका इस तरह हमारे परिवार में बेरोकटोक आना-जाना
पर यहाँ से लौटते वक्त उनके चेहरों की संतुष्टि
हमारी आत्माओं को तृप्त करने लगी |
फ़िर जो भी आता
हम जम कराने देने लगे
जो कुछ भी था हमारे पास
फल-फूल, छांह-प्रेम सब कुछ |
पर शायद ये काफी नही था
इंसानों के ह्रदय परिवर्तन के लिए
और एक-एक करके मेरे सभी साथी
मुझसे बिछड़ते चले गए |
दर्द तो बहुत हुआ अपनो से बिछुड़ने का
पर सब कुछ सह लिया
नियति की इच्छा मानकर |
--------------------------------------------
फ़िर कुछ दिनों बाद देखा
उस शिल्प की अनुपम कृति को बनते हुए
अपने इस नंगी आंखों से
वो ईंट-से-ईंट जुड़ता हुआ
और बनता हुआ कुछ अद्भुत |
शायद ये मेरे उस पूर्वाग्रह को बदल रहे थे
कि मानव सिर्फ़ विध्वंशक ही है |
मैंने एक और रूप देखा उसका
एक रचनाकार का, एक शिल्पकार का |
और फ़िर कई सारे लोग रोजाना
देश-विदेश से |
वो आते थे, रुकते थे उसी 'ताज' में
और कुछ मेरी छांह में |
ज़िन्दगी में फ़िर से एक नया आनंद आने लगा था
रोज नए-नए लोग
खुशियाँ बाँटते, अपने गम से दूर |
पर शायद मेरा आनंद,
नियति से मेल नही खाता
जो मुझे रूबरू किया गया
उस २६ नवम्बर की शाम से
उन चीख-चीत्कारों से,
गोलियों-बंदूकों से,
उन विधवा माँओं से,
उन निर्दोष लाशों से,
उस असहनीय 'सत्य' से
जिसे देखकर या सोचकर भी
आत्मा कलपने लगती है |
विश्वास हटने लगता है
मूल्यों से, इंसानियत से, ईश्वर से
अपने अस्तित्व से |
------------------------------------------
मैं आज भी पछताता हूँ
कोसता हूँ अपने भाग्य को
कि मुझे भी क्यों नही मार दिया गया
मेरे दोस्तों के साथ
क्यों जीवित छोड़ा मुझे नियति ने
उस क्रूर नर-संहार का साक्षी बनने को |
आज फ़िर वो दर्द
ताजा हो चुका है
बल्कि उससे कहीं ज्यादा
जो मैंने महसूस किया था
अपने दोस्तों से बिछुड़ते वक्त |
अब बिल्कुल ही जीने की इच्छा नही रही,
बस खड़ा हूँ इसी उम्मीद में
की मेरी मौत मेरे साथियों की तरह 'आम' नही होगी
सिर्फ़ उसकी आवश्यकतों कि पूर्ति के लिए
जैसा वो आज तक करता आया |
मुझे छलनी किया जाएगा
वहशियत के साथ,
गोलियों की बौछार से
क्योंकि तब तक कोई ऐसा जीव बचेगा नही
जिसे तिल-तिल मरता देखकर
उन दरिंदों की बंदूकें अट्टहास करती हैं |
-----------------------------------------
उपसंहार :
नवम्बर से इस झील का रंग
थोड़ा लाल सा हो गया है
किनारे खड़े पेड़ के हरे-हरे पत्ते
अपने आप गिर रहे हैं उसमे
ऐसा लग रहा है
मरते-मरते भी ये पेड़
अन्तिम आहुति देना चाह रहे हैं
इस कृतध्न समाज को
अपने आंसुओं की चिता के रूप में
जिसमे बैठकर जाना है
इंसान को जाने कहाँ ?
- राजेश 'आर्य'
----विश्व पर्यावरण दिवस, २००९ --------------------------
जब कोई नही आता था यहाँ
सिवाय उन चिडियों की चहचाहट के
जो हमारे ऊपर से गुजरते हुए
हमारी जटाओं को देखकर
अनायास ही कुछ बातें करने लगते थे |
मेरे पास खड़े दोस्त भी खुश हो जाते थे
और होड़ मच जाती थी हममे
की कौन अपनी जटाएं कितनी फैला सकता है |
फ़िर धीरे-धीरे मैंने देखा
कुछ थके-परेशान लोगों को हमारे पास आते हुए
पहले तो मुझे अच्छा नही लगा
उनका इस तरह हमारे परिवार में बेरोकटोक आना-जाना
पर यहाँ से लौटते वक्त उनके चेहरों की संतुष्टि
हमारी आत्माओं को तृप्त करने लगी |
फ़िर जो भी आता
हम जम कराने देने लगे
जो कुछ भी था हमारे पास
फल-फूल, छांह-प्रेम सब कुछ |
पर शायद ये काफी नही था
इंसानों के ह्रदय परिवर्तन के लिए
और एक-एक करके मेरे सभी साथी
मुझसे बिछड़ते चले गए |
दर्द तो बहुत हुआ अपनो से बिछुड़ने का
पर सब कुछ सह लिया
नियति की इच्छा मानकर |
--------------------------------------------
फ़िर कुछ दिनों बाद देखा
उस शिल्प की अनुपम कृति को बनते हुए
अपने इस नंगी आंखों से
वो ईंट-से-ईंट जुड़ता हुआ
और बनता हुआ कुछ अद्भुत |
शायद ये मेरे उस पूर्वाग्रह को बदल रहे थे
कि मानव सिर्फ़ विध्वंशक ही है |
मैंने एक और रूप देखा उसका
एक रचनाकार का, एक शिल्पकार का |
और फ़िर कई सारे लोग रोजाना
देश-विदेश से |
वो आते थे, रुकते थे उसी 'ताज' में
और कुछ मेरी छांह में |
ज़िन्दगी में फ़िर से एक नया आनंद आने लगा था
रोज नए-नए लोग
खुशियाँ बाँटते, अपने गम से दूर |
पर शायद मेरा आनंद,
नियति से मेल नही खाता
जो मुझे रूबरू किया गया
उस २६ नवम्बर की शाम से
उन चीख-चीत्कारों से,
गोलियों-बंदूकों से,
उन विधवा माँओं से,
उन निर्दोष लाशों से,
उस असहनीय 'सत्य' से
जिसे देखकर या सोचकर भी
आत्मा कलपने लगती है |
विश्वास हटने लगता है
मूल्यों से, इंसानियत से, ईश्वर से
अपने अस्तित्व से |
------------------------------------------
मैं आज भी पछताता हूँ
कोसता हूँ अपने भाग्य को
कि मुझे भी क्यों नही मार दिया गया
मेरे दोस्तों के साथ
क्यों जीवित छोड़ा मुझे नियति ने
उस क्रूर नर-संहार का साक्षी बनने को |
आज फ़िर वो दर्द
ताजा हो चुका है
बल्कि उससे कहीं ज्यादा
जो मैंने महसूस किया था
अपने दोस्तों से बिछुड़ते वक्त |
अब बिल्कुल ही जीने की इच्छा नही रही,
बस खड़ा हूँ इसी उम्मीद में
की मेरी मौत मेरे साथियों की तरह 'आम' नही होगी
सिर्फ़ उसकी आवश्यकतों कि पूर्ति के लिए
जैसा वो आज तक करता आया |
मुझे छलनी किया जाएगा
वहशियत के साथ,
गोलियों की बौछार से
क्योंकि तब तक कोई ऐसा जीव बचेगा नही
जिसे तिल-तिल मरता देखकर
उन दरिंदों की बंदूकें अट्टहास करती हैं |
-----------------------------------------
उपसंहार :
नवम्बर से इस झील का रंग
थोड़ा लाल सा हो गया है
किनारे खड़े पेड़ के हरे-हरे पत्ते
अपने आप गिर रहे हैं उसमे
ऐसा लग रहा है
मरते-मरते भी ये पेड़
अन्तिम आहुति देना चाह रहे हैं
इस कृतध्न समाज को
अपने आंसुओं की चिता के रूप में
जिसमे बैठकर जाना है
इंसान को जाने कहाँ ?
- राजेश 'आर्य'
----विश्व पर्यावरण दिवस, २००९ --------------------------
Sunday, April 26, 2009
पुकार
गंगा की कल-कल ने,हिमालय की दिव्यता ने!
वेदों की ऋचाओं ने,गीता के ज्ञान ने!
अपने देश, अपने गाँव की माटी ने,
गुरुवर के दर्द ने, शहीदों के बलिदान ने!
सिंह की गर्जनाओं ने, हम सबके प्यार ने,
तुम्हें पुकारा है!
सारी निगाहें तुम्हारी तरफ हैं!
सारी आशाएँ तुम पर हैं!
जागो अब देर ना कर देना...
रचनाकार:
रवि 'ब्रह्मानंद'
वेदों की ऋचाओं ने,गीता के ज्ञान ने!
अपने देश, अपने गाँव की माटी ने,
गुरुवर के दर्द ने, शहीदों के बलिदान ने!
सिंह की गर्जनाओं ने, हम सबके प्यार ने,
तुम्हें पुकारा है!
सारी निगाहें तुम्हारी तरफ हैं!
सारी आशाएँ तुम पर हैं!
जागो अब देर ना कर देना...
रचनाकार:
रवि 'ब्रह्मानंद'
Saturday, April 25, 2009
क्या है कोई युवा??
क्या है कोई युवा, जो मेरा हाथ थाम सके, जन्म-जन्मान्तर तक?
क्या है कोई युवा, जिसका आराध्य इस देश की माटी हो?
क्या है कोई युवा, जिसका सत्य ही धर्म हो, परमार्थ ही कर्म हो?
क्या है कोई युवा, जो वृहत्तर भारत के सपने देखता हो?
क्या है कोई युवा, आर्यावर्त्त की रज से मेरी माँग भर दे?
क्या है कोई युवा, जो गुरुवर के सपनो को साकार कर दे?
क्या है कोई ऐसा युवा? क्या है कोई ऐसा युवा? क्या है कोई ऐसा युवा?
हाँ तुम ही हो, हाँ तुम ही हो, हाँ तुम ही हो - कौशल्या के राम!
हाँ तुम ही हो, हाँ तुम ही हो, हाँ तुम ही हो - मेरे श्याम!
- तुम्हारी मीरा
रचनाकार:
रवि 'ब्रह्मानंद'
क्या है कोई युवा, जिसका आराध्य इस देश की माटी हो?
क्या है कोई युवा, जिसका सत्य ही धर्म हो, परमार्थ ही कर्म हो?
क्या है कोई युवा, जो वृहत्तर भारत के सपने देखता हो?
क्या है कोई युवा, आर्यावर्त्त की रज से मेरी माँग भर दे?
क्या है कोई युवा, जो गुरुवर के सपनो को साकार कर दे?
क्या है कोई ऐसा युवा? क्या है कोई ऐसा युवा? क्या है कोई ऐसा युवा?
हाँ तुम ही हो, हाँ तुम ही हो, हाँ तुम ही हो - कौशल्या के राम!
हाँ तुम ही हो, हाँ तुम ही हो, हाँ तुम ही हो - मेरे श्याम!
- तुम्हारी मीरा
रचनाकार:
रवि 'ब्रह्मानंद'
Friday, April 17, 2009
What does the youth camp offer?
For Students:
* Campers have fun while learning about Indian spirituality, its
application in day to day life and about the science behind
traditional spiritual practices, most of which is new even for the
parents.
* Your browser may not support display of this image. Fun activities
like rhymes, mind memory games, Vedic math, Lego challenges,
puppets smartly interwoven with teaching.
* Learn how to release stress through yogic asansas and
pranayam(breathing exercises).
* Make new friends, learn the value of cooperation and teamwork,
build self-esteem and learn important lessons of love and
compassion and the joy of giving.
* Learn how to follow a healthy daily routine and the importance of
exercise and nutritious food choices.
* Teaching focuses on the Moral and Character building of the
children by talking to them about real life scenarios.
* Classes which focus on practical applications of spirituality
like Anger management, Fear management, Peer-pressure,
Time-management, Confidence-building and Perseverance.
* Nourish the young minds and enable them to take idealistic
decisions in the course of their life.
* Make our future youth healthy, self-reliant, educated, polite and
sensitive and reorient their thinking process.
For Professionals:
While competition in the industry is getting fierce, companies are
always on the lookup for improving the productivity of their staff. To
keep up with today's corporate culture, employees are also spending more
and more time at work and less time with their family. While the
employers optimize on the profits, the employee is burning out at a
faster rate than sustainable leading to tremendous stress, anxiety and
depression. This year, 12% of American women and 7% of American men will
experience depression. Recent recession and large scale layoffs is just
driving man's emotional tolerance to the edge leading to medical
problems, increase in suicide incidents, breaking families and kids
falling prey to crime and drugs. In addition to materialistic comforts,
our kids are inheriting an immoral, unethical and unsustainable life
style. The greed and valueless ambitions of a few have brought the world
economy to its kness. Spirituality is the only means to increase one's
emotional intelligence and sustain self in such tough times.
Spirituality now is something more than simple meditation and
yoga. It is the art of relieving stress and mental hazards. As rightly
said by Prof. S.K. Chakraborty, IIM, Kolkata. "Industry is boldly mining
the depths of Indian Wisdom, the Vedas, Upanishads, Puranas, looking for
a framework springing from Indian roots and thought. It is time we
rediscover our own ethos and cultural context to provide meaningful and
relevant management skills to the youth of the nation." Certainly
spirituality in the workplace is an idea whose time has come and its
relevance is being more and more realized .
At the camp learn how:
* Stress can be identified and managed.
* Ambition and Competition can be constructive.
* One can improve upon one's emotional quotient and prepare self to
weather any challenges with self-confidence and optimism.
* Spirituality can strengthen one's relationships.
* Spiritual goals can give you material success.
* To balance goals and ethics in a highly competitive culture.
* To raise kids we can be proud of.
* To build a happy and harmonious family.
* To take care of your health with simple Yoga asanas and keep
ailments like joint pain, blood pressure, obesity, diabetes at bay.
* To use simple breathing exercises to improve upon the
Prana-tatva(life-force/energy) in one's body and enhance overall
immunity of the body.
* Yagyopathy, as an alternate form of therapy can help improve
overall health and well being.
So far we have only focussed on improving our physical strength
(via exercise and gym) and mental strength by pushing self and kids for
higher academic goals. Building the power of the soul (atma-shakti) with
spirituality is the need of the time and that is what the camp hopes to
address.
Contributed By:
Smita Joshi Didi(USA)
* Campers have fun while learning about Indian spirituality, its
application in day to day life and about the science behind
traditional spiritual practices, most of which is new even for the
parents.
* Your browser may not support display of this image. Fun activities
like rhymes, mind memory games, Vedic math, Lego challenges,
puppets smartly interwoven with teaching.
* Learn how to release stress through yogic asansas and
pranayam(breathing exercises).
* Make new friends, learn the value of cooperation and teamwork,
build self-esteem and learn important lessons of love and
compassion and the joy of giving.
* Learn how to follow a healthy daily routine and the importance of
exercise and nutritious food choices.
* Teaching focuses on the Moral and Character building of the
children by talking to them about real life scenarios.
* Classes which focus on practical applications of spirituality
like Anger management, Fear management, Peer-pressure,
Time-management, Confidence-building and Perseverance.
* Nourish the young minds and enable them to take idealistic
decisions in the course of their life.
* Make our future youth healthy, self-reliant, educated, polite and
sensitive and reorient their thinking process.
For Professionals:
While competition in the industry is getting fierce, companies are
always on the lookup for improving the productivity of their staff. To
keep up with today's corporate culture, employees are also spending more
and more time at work and less time with their family. While the
employers optimize on the profits, the employee is burning out at a
faster rate than sustainable leading to tremendous stress, anxiety and
depression. This year, 12% of American women and 7% of American men will
experience depression. Recent recession and large scale layoffs is just
driving man's emotional tolerance to the edge leading to medical
problems, increase in suicide incidents, breaking families and kids
falling prey to crime and drugs. In addition to materialistic comforts,
our kids are inheriting an immoral, unethical and unsustainable life
style. The greed and valueless ambitions of a few have brought the world
economy to its kness. Spirituality is the only means to increase one's
emotional intelligence and sustain self in such tough times.
Spirituality now is something more than simple meditation and
yoga. It is the art of relieving stress and mental hazards. As rightly
said by Prof. S.K. Chakraborty, IIM, Kolkata. "Industry is boldly mining
the depths of Indian Wisdom, the Vedas, Upanishads, Puranas, looking for
a framework springing from Indian roots and thought. It is time we
rediscover our own ethos and cultural context to provide meaningful and
relevant management skills to the youth of the nation." Certainly
spirituality in the workplace is an idea whose time has come and its
relevance is being more and more realized .
At the camp learn how:
* Stress can be identified and managed.
* Ambition and Competition can be constructive.
* One can improve upon one's emotional quotient and prepare self to
weather any challenges with self-confidence and optimism.
* Spirituality can strengthen one's relationships.
* Spiritual goals can give you material success.
* To balance goals and ethics in a highly competitive culture.
* To raise kids we can be proud of.
* To build a happy and harmonious family.
* To take care of your health with simple Yoga asanas and keep
ailments like joint pain, blood pressure, obesity, diabetes at bay.
* To use simple breathing exercises to improve upon the
Prana-tatva(life-force/energy) in one's body and enhance overall
immunity of the body.
* Yagyopathy, as an alternate form of therapy can help improve
overall health and well being.
So far we have only focussed on improving our physical strength
(via exercise and gym) and mental strength by pushing self and kids for
higher academic goals. Building the power of the soul (atma-shakti) with
spirituality is the need of the time and that is what the camp hopes to
address.
Contributed By:
Smita Joshi Didi(USA)
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